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श्री कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – Kanakadhara Stotram in Hindi | Sanskrit

Kanakadhara Stotram in Hindi – श्री कनकधारा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो माता लक्ष्मी को समर्पित है। यह स्तोत्र समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पोस्ट में हम कनकधारा स्तोत्र के महत्व, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, और संस्कृत श्लोकों के हिंदी अर्थ को विस्तार से जानेंगे। यदि आप अपने जीवन में आर्थिक समृद्धि और मानसिक शांति की कामना करते हैं, तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें और कनकधारा स्तोत्र के दिव्य आशीर्वादों का अनुभव करें। आइए हम पवित्र Kanakdhara Stotra की महिमा और उसके लाभों को जानें।

कनकधारा स्तोत्र पाठ – Shri Kanakadhara Stotram in Hindi | Sanskrit

ध्यान

ॐ वन्दे वन्दारु मन्दार मिन्दीरानन्द कल्दलं |
अमंदानन्द सन्दोह बन्धुरं सिंधुराननं ||

॥ अथ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

॥ इति श्री शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं ॥


श्री कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – Kanakdhara Stotram With Hindi Meaning

यहां हम कनकधारा स्तोत्र को हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अर्थ जानकर आप इसे और भी बेहतर समझ पाएंगे और इसके पाठ का संपूर्ण लाभ उठा सकेंगे।

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ -> जैसे भ्रमरी अर्धविकसित पुष्पों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, वैसे ही जो भगवान् श्रीहरि के रोमांच से शोभायमान श्रीअंगों पर अनवरत पड़ती रहती है तथा जिसमें समस्त ऐश्वर्य, धन,संपत्ति का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मीजी की कटाक्षलीला मेरे लिये मङ्गलकारी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ -> जिस प्रकार भ्रमरी कमल पर आती-जाती रहती है (मंडराती रहती है), वैसे ही भगवान् मुरारी (श्रीहरि) के मुखकमल की ओर प्रेम सहित जाकर और लज्जा के कारण वापिस आकर समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुख दृष्टिमाला मुझे खूब धन-संपत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ -> जो सम्पूर्ण देवताओं के स्वामी इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी आप अत्यंत प्रिय हो तथा नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है,ऐसी लक्ष्मी अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृश्टि क्षण भर के लिए मुझ पर अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ -> जिसकी पुतली एवं भौहे काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंदकंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान् को अपने निकट पाकर किन्छित तिरछी हो जाती हो, ऐसे शेषपर शयन करनेवाले भगवान् नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करे।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ -> भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणि से विभूषित वक्षःस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली की तरह जो सुशोभित है, जो भगवान् के चित्त में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमल निवासिनी लक्ष्मीजी कृपाकटाक्ष मेरा भी सदासर्वदा कल्याण करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

अर्थ -> जिस तरह से बिजली चमकती है,उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघमाला की तरह सुमनोहर वक्षःस्थल पर आप एक विद्युत के समान प्रकाशित होती हो,जो समस्त लोको की माता है, भार्गवापुत्र भगवती महालक्ष्मीजी पूजनीय है वो मुझे कल्याण प्रदान करे। (Kanakdhara Stotra in Hindi)

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ -> समुद्रकन्या (समुद्र की पुत्री) लक्ष्मी की वह मन्द अलस, मन्थर, अर्धोन्मीलित दृष्टि के प्रभावमात्र से कामदेव ने भगवान् मधुसूदन के ह्रदय में स्थान प्राप्त किया था, वही दृष्टि मेरे ऊपर भी पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ -> भगवान् श्रीहरि की प्रेमिका का नेत्र रूपी मेघ, दयारूपी वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए दूर कर विषाद में पड़े हुए मुझ दुखी सदृश चातक पर धन रूपी जलधारा की वर्षा करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ -> मतिहीन मनुष्य भी जिसके स्मरण मात्र से ही स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है, उन्ही कमलासना कमला लक्ष्मीजी के विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि, संतान आदि की वृद्धि प्रदान करे |

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ -> जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में बिराजमान होती है, पालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मीके रूप में विष्णुकी पत्नी के रूप में बिराजमान होती है, प्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती है, उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्ययौवना प्रेयसी भगवती लक्ष्मीको मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ -> हे माँ लक्ष्मी, शुभकर्म फलप्रदायिनी रतिस्वरुप मै आपको प्रणाम करता हु | रमणीय गुणों के समुद्र स्वरूपा रति के रूप में आपको प्रणाम है | शतपत्र वाले अर्थात सौ पत्रोंवाले कमलकुञ्ज में निवास करनेवाली शक्तिरूपा माँ रमा (लक्ष्मी) को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तम की प्रेयसी को मेरा नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ -> कमल समान मुखवाली लक्ष्मी को नमस्कार है | क्षीरसमुद्र में उत्पन्न होने वाली समुद्रतनया रमा को नमस्कार है। चंद्र और अमृत की बहन को नमस्कार है। भगवान् नारायण की प्रेयसी को नमस्कार है |

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

अर्थ -> हे कमलाक्षी (कमल के जैसे आँखोंवाली),आपके चरणों में की हुई स्तुति प्रार्थना ऐश्वर्य (सम्पत्ति) प्रदान करनेवाली और समस्त इन्द्रियों को आनंदकारिणी है, सभी सुखो को देनेवाली (साम्राज्यादायिनी), सभी पापो को नष्ट करनेवाली, आप मुझे अपने चरणों की वंदना करने का शुभ अवसर सदा प्रदान करे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ -> जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना सेवक के लिए समस्त मनोरथ और धन-संपत्ति का विस्तार करती है, उस मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी देवी को मैं मन, वचन और शरीर से भजन करता हूँ।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ -> भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ -> महानुभावो द्वारा (दिग्गजजनो के द्वारा पूजित) सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के स्वच्छ मनोहर जल से जिस भगवान के श्रीअङ्ग का अभिषेक होता है, उस समस्त लोको के अधीश्वर भगवान् विष्णु की पत्नी, समुद्रतनया (क्षीरसागर पुत्री), जगन्माता लक्ष्मी को में प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ|

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ -> हे कमलनयन भगवान् विष्णु की प्रिया लक्ष्मीजी! मैं दीनहीन मनुष्यो का अग्रगण्य हूँ ,इसलिए आपकी कृपा का स्वभावसिद्ध पात्र हूँ | आप छलकती हुई करुणा के बाढ़ की तरल-तरंगो के सदृश कटाक्षों के द्वारा मेरी दिशाओ में भी थोड़ा अवलोकन कीजिये |

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ -> जो मनुष्य या साधक इन स्तोत्रों के द्वारा नित्य वेदत्रयी स्वरूपा,भगवती रमा (लक्ष्मीजी) के स्तोत्र पाठ करते है वो मनुष्य इस पृथ्वी पर सौभाग्यशाली होते है, और विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जाने के लिए उत्सुक रहते है।


कनकधारा स्तोत्र से जुडी रोचक कहानी

एक दिन आदि गुरु शंकराचार्य अपने दोपहर के भोजन के लिए घर-घर भिक्षा मांगने गए। एक घर में भिक्षा मांगते समय एक बहुत गरीब ब्राह्मण महिला दरवाजे पर आई। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने उनसे भिक्षा मांगी महिला ने अपने घर की तलाशी ली और केवल उसे एक आंवला फल मिला और वही आंवला उस महिला ने आदि गुरु शंकराचार्य जी को दे दी।

उस महिला की दया और निस्वार्थता देख शंकराचार्य जी इतने प्रभावित हो गए की उन्होंने देवी लक्ष्मी की प्रशंसा में एक स्तोत्र का पाठ किया। उस पाठ से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर आदि गुरु शंकराचार्य जी के सामने प्रकट हुई और आदि गुरु शंकराचार्य जी ने उस गरीब ब्राह्मण महिला को धनी बनाने की कृपा माँ से करी और मां लक्ष्मी ने उस गरीब ब्राह्मण महिला को धनी बना दिया।

कनकधारा स्तोत्र का महत्व

कनकधारा स्तोत्र में मां लक्ष्मी की महिमा, उनकी करुणा और उनकी दिव्यता का वर्णन है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की महत्ता को दर्शाता है और उनके आशीर्वाद से जीवन को सुख-समृद्धि से भरपूर बनाता है। शुक्रवार के दिन कनकधारा स्त्रोत का जाप करने का विशेष महत्व है इस दिन कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से माता लक्ष्मी उसके जीवन से सभी परेशानियों को हटा कर सुख सम्पदा प्रदान करती हैं। इसलिए शुक्रवार के दिन कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotra Path) अवश्य करना चाहिए। जैसे की स्तोत्र में कहा गया है की इसका नियमित तीनों समय- प्रातकाल, मध्याहन और सायकाल को इसका पाठ करने से मनुष्य महान गुणवान, सोभाग्यशाली और कुबेर के समान धनवान हो जाता है।


FAQs – कनकधारा स्तोत्र पाठ हिंदी में – Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi

1. कनकधारा स्तोत्र में कितने श्लोक है?

कनकधारा स्तोत्रम के मूल रूप में 18 श्लोक है। कुछ स्तोत्रम में 21 श्लोक भी देखे जा सकते हैं।

2. कनकधारा स्तोत्र के रचयिता कौन है?

कनकधारा स्तोत्र के रचनाकार आदिगुरु शंकराचार्य जी हैं।

3. कनकधारा स्तोत्र पाठ के लाभ?

कनकधारा स्तोत्र का पाठ (Kanakdhara Strot Path) मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। कनकधारा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से धन धान्य में वृद्धि होती है, घर में सुख शांति होती है। कनकधारा स्तोत्र को ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी माना गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आर्थिक तंगी दूर होती है, समृद्धि की प्राप्ति होती है, और दरिद्रता दूर होती है।


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