Siddha Kunjika Stotram Lyrics – सिद्ध कुंजिका स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के नाम से उदधृत है। दुर्गा सप्तशती (Durga Sapshati) का पाठ थोड़ा कठिन है। ऐसे में कुंजिका स्तोत्रम् का पाठ ज्यादा सरल भी है और ज्यादा प्रभावशाली भी है। मात्र कुंजिका स्तोत्र के पाठ से सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का संक्षिप्त रूप माना जाता है और इसे विशेष रूप से नवरात्री और दुर्गापूजा के दिनों में पाठ करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसमें देवी के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है और उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। इस लेख में हम सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddh Kunjika Stotram in Hindi) के श्लोकों का हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं –
Siddha Kunjika Stotram in Sanskrit | Hindi
॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
अर्थ: (शिवजी ने कहा) हे देवी, सुनो, मैं आपको सर्वोत्तम कुंजिका स्तोत्र बताता हूँ, जिसके मंत्र के प्रभाव से चण्डी जप शुभ फलदायक हो जाता है।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
अर्थ: इसमें कवच, अर्गला स्तोत्र, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास या पूजन की आवश्यकता नहीं है।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
अर्थ: केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा सप्तशती पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। हे देवी, यह बहुत ही गुप्त है और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
अर्थ: हे पार्वती, इसे अपने योनि के समान गुप्त रखना चाहिए। केवल पाठ करने से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उचाटन आदि सिद्ध हो जाते हैं।
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
मुख्य स्तोत्र
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
अर्थ: हे रुद्ररूपिणी देवी, आपको नमस्कार है। हे मधु दैत्य का मर्दन करने वाली देवी, आपको नमस्कार है। हे कैटभ को हराने वाली देवी, आपको नमस्कार है। हे महिषासुर का संहार करने वाली देवी, आपको नमस्कार है।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥
अर्थ: हे शुम्भ दैत्य का नाश करने वाली देवी, आपको नमस्कार है। हे निशुम्भासुर का घात करने वाली देवी, आपको नमस्कार है। हे महादेवी, कृपया जाग्रत होइए और मेरे जप को सिद्ध कीजिए।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥
अर्थ: ‘ऐं’ के मंत्र के द्वारा सृष्टि करने वाली और ‘ह्रीं’ के मंत्र से इसका पालन करने वाली देवी, आपको नमस्कार है। ‘क्लीं’ के मंत्र के द्वारा काम (इच्छा) की रूपिणी, बीजमंत्र स्वरूपा देवी, आपको नमस्कार है।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥
अर्थ: चामुण्डा, चण्ड (असुर) का संहार करने वाली और ‘यै’ के मंत्र से वरदान देने वाली देवी, आपको नमस्कार है। ‘विच्चे’ मंत्र के द्वारा हमेशा अभय (भय से मुक्ति) देने वाली देवी, आपको नमस्कार है। मंत्र रूपिणी देवी, आपको नमस्कार है।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥
अर्थ: ‘धां’, ‘धीं’, ‘धूं’ मंत्रों के द्वारा धारण करने वाली धूर्जटे (शिव) की पत्नी, ‘वां’, ‘वीं’, ‘वूं’ मंत्रों से वाणी की अधिष्ठात्री देवी, ‘क्रां’, ‘क्रीं’, ‘क्रूं’ मंत्रों से कालिका देवी, ‘शां’, ‘शीं’, ‘शूं’ मंत्रों से मुझे शुभ (मंगल) प्रदान करें।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥
अर्थ: ‘हुं’ मंत्र के रूपिणी देवी, ‘जं’ मंत्र के द्वारा जम्भन (दमन) करने वाली देवी, भ्रां, भ्रीं, भ्रूं मंत्रों के द्वारा भैरवी और भद्रा रूपिणी देवी भवान्यै, आपको नमस्कार है।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥
अर्थ: अं, कं, चं, टं, तं, पं, यं, शं, वीं, दुं, ऐं, वीं, हं, क्षं मंत्रों के द्वारा दीप्ति (प्रकाश) बढ़ाएं और मुझे सिद्धि प्राप्त करें। त्रोटय, त्रोटय (नष्ट करें), दीप्तं (प्रकाशमान) करें। स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥
अर्थ: ‘पां’, ‘पीं’, ‘पूं’ मंत्रों के द्वारा पार्वती पूर्णा देवी, ‘खां’, ‘खीं’, ‘खूं’ मंत्रों से खेचरी देवी, ‘सां’, ‘सीं’, ‘सूं’ मंत्रों से सप्तशती देवी, मेरी मंत्र सिद्धि करें।
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
अर्थ: यह कुंजिका स्तोत्र मंत्र जाग्रति हेतु है। इसे किसी अभक्त को न दें और गुप्त रखें, पार्वती।
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
अर्थ: जो व्यक्ति कुंजिका स्तोत्र के बिना सप्तशती का पाठ करता है, उसे कोई सिद्धि प्राप्त नहीं होती वैसे ही जैसे जंगल में रोने से कोई लाभ नहीं होता।
इस प्रकार श्री रुद्रयामल ग्रंथ के गौरीतंत्र में शिव और पार्वती के संवाद में कुंजिका स्तोत्रम् समाप्त होता है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति का एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी स्तोत्र है। इसके नियमित पाठ से अनेक आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख लाभों का वर्णन किया गया है:
आध्यात्मिक लाभ
- सर्वकामना पूर्ति: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- सिद्धियों की प्राप्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जो साधक की आत्मिक उन्नति में सहायक होती हैं।
- दुर्गा सप्तशती का संक्षिप्त फल: केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा सप्तशती के पाठ का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
मानसिक लाभ
- मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- तनाव और चिंता का नाश: यह स्तोत्र मानसिक तनाव और चिंता को दूर करता है, जिससे साधक को मानसिक बल मिलता है।
- एकाग्रता और ध्यान: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ साधक की एकाग्रता और ध्यान शक्ति को बढ़ाता है।
शारीरिक लाभ
- आरोग्यता: इस स्तोत्र के पाठ से साधक को शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है।
- ऊर्जा और उत्साह: यह स्तोत्र साधक को ऊर्जा और उत्साह से भर देता है, जिससे दैनिक जीवन में उत्साह बना रहता है।
- सुरक्षा: यह स्तोत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
अन्य लाभ
- मारण, मोहन, वशीकरण: इस स्तोत्र का पाठ करने से मारण (विनाश), मोहन (मोह), और वशीकरण (किसी को वश में करने) की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- कष्टों का निवारण: यह स्तोत्र जीवन के विभिन्न कष्टों और कठिनाइयों का निवारण करता है।
- सर्व बाधाओं का नाश: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ साधक के जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है और उसे सफलता की ओर अग्रसर करता है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के लिए पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक शांत और पवित्र स्थान पर देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। धूप, दीप, फूल, और जल तैयार करें। आचमन और प्राणायाम करें, फिर दीप प्रज्वलित करें। देवी का ध्यान करते हुए प्रारंभिक मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का उच्चारण करें। शिव द्वारा कही गई पंक्तियों के साथ मुख्य स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और ध्यान से करें। पाठ समाप्ति के बाद ‘ॐ शांतिः शांतिः शांतिः’ का उच्चारण करें और प्रसाद वितरण करें। देवी से अपनी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करें।
FAQs – Siddha Kunjika Stotram
Q1. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का महत्व क्या है?
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का महत्व यह है कि यह दुर्गा सप्तशती का संक्षिप्त रूप है और इसमें देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
Q2. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन इसे विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में करना अधिक फलदायक माना जाता है। इसे सुबह के समय स्नान आदि करके पवित्र मन से करना चाहिए।
Q3. क्या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ किसी विशेष विधि से किया जाना चाहिए?
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के लिए कुछ विशेष विधियों और नियमों का पालन करना चाहिए ताकि इसका पूरा लाभ प्राप्त हो सके। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शांत, पवित्र स्थान पर देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें और मंत्र का उच्चारण करें।
Disclaimer – इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न माध्यमों – धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें।
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